तलाश
कुछ उलझी भीड़ की तन्हाइयों में
खुद को तलाशती
बेफिक्र लोगों में चिंता से जकड़ी खुद को तलाशती
एक नारी के मन में लगे जख्मों को खोजती।
गुमनाम मंजिलों में रास्ता तलाशती
कभी खुद को तो कभी अपने गमों को खोजती
डरी सहमी जिंदगी में खुशियों को झकती
अन्धेर रास्तों पर किरण में लिपटी हो,
ऐसे ही एक दिन को खोजती
मिल जाए कही बेफिक्र जिन्दगी
शायद इसलिए मुश्किलों में भी रास्ता तलाशती
अपने ही अन्दर आत्मा को खोजती
अपने ही अन्दर जज्बा खोजती
टुटे हुए दिल के जख्मों को झकती
कुछ उलझी भीड़ की तन्हाइयों में
खुद को तलाशती।।
--प्रियंका गोड़िया
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